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 रुद्र वीणा   भारतीय संगीत  में रुद्र वीणा एक प्राचीन वाद्ययंत्र माना जाता है। यह न केवल शास्त्रीय संगीत का एक प्रमुख वाद्य है, बल्कि इसका संबंध आध्यात्मिकता से भी जोड़ा जाता है। 1. प्राचीन ग्रंथों में वीणा का उल्लेख (क) वेद और पुराणों में वेदों में ‘वीणा’ शब्द का प्रयोग तो मिलता है, पर वह सामान्य रूप से किसी तंतुवाद्य के लिए किया गया है, न कि रुद्र वीणा के लिए। शिव पुराण, स्कंद पुराण, और अन्य शैव ग्रंथों में भगवान शिव को ‘वीणाधर’ कहा गया है। इन ग्रंथों के अनुसार, शिव ने ध्यान और तांडव करते हुए वीणा और डमरू का वादन किया, किंतु वहाँ भी "रुद्र वीणा" शब्द का प्रयोग नहीं हुआ है। (ख) नाट्यशास्त्र (भरतमुनि) भरत मुनि द्वारा रचित नाट्यशास्त्र (लगभग दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व) में भी ‘वीणा’ का विस्तृत वर्णन है। इसमें वीणा की विभिन्न रचनाओं, प्रकारों और उसके प्रयोग की तकनीक पर चर्चा की गई है। परंतु इस ग्रंथ में भी “रुद्र वीणा” नाम से किसी विशेष वीणा का उल्लेख नहीं मिलता। 2. मध्यकालीन ग्रंथों में रुद्र वीणा का आगमन (क) संगीत रत्नाकर (शारंगदेव) 13वीं शताब्दी में लिखे गए शारंगदेव के ग्रं...
प्रमुख तबला वादक पंडित सामता प्रसाद उर्फ गुदई महाराज जीवन परिचय  पंडित सामता प्रसाद , जिन्हें स्नेहपूर्वक " गुदई महाराज " कहा जाता है, भारतीय शास्त्रीय संगीत के बनारस घराने के एक महान तबला वादक थे।  आपका जन्म 20 जुलाई 1921 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी के कबीर चौरा नामक स्थान पर  हुआ था।  उनका परिवार तबला और पखावज की परंपरा में गहराई से रचा-बसा था।  उनके पिता पंडित हरि सुंदर (बच्चा मिश्रा के नाम से भी प्रसिद्ध), दादा पंडित जगन्नाथ मिश्रा और पूर्वज पंडित प्रताप महाराज (गुदई महाराज) सभी प्रतिष्ठित संगीतज्ञ थे।   प्रारंभिक जीवन और शिक्षा सामता प्रसाद ने अपने पिता बच्चा मिश्र जी से तबला वादन की प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की, लेकिन जब वे केवल सात वर्ष के थे, तब उनके पिता का निधन हो गया।  इसके बाद, उन्होंने पंडित बिक्कू महाराज (जो स्वयं पंडित बलदेव सहाय के शिष्य थे) से प्रशिक्षण लिया।  उन्होंने प्रतिदिन लंबे समय तक अभ्यास करके अपनी कला में निपुणता प्राप्त की।    उपलब्धियाँ 1942 में इलाहाबाद संगीत सम्मेलन में अपने पहले  के साथ, सामता ...

भारतीय संगीत में लय क्या है।

व्यापक अर्थ में लय नैसर्गिक है,यह सम्पूर्ण जगत में विद्यमान है। प्रकृति लय मय है प्रातः काल सूर्योदय होना फिर दोपहर फिर शाम और रात्रि ये सभी एक लय में बद्ध होती है। मनुष्य के हृदय की गति एक निश्चित लय में ही होती है ,और जब इस निश्चित लय में अनिश्चितता होती है तो वो प्रलय को दर्शाती है, मोटे तौर में संगीत में   हम कह सकते है कि समय की समान गति को लय कहते है। लय तीन प्रकार की होती है  1.विलंबित लय 2. मध्य लय 3. द्रुत लय 1 . विलंबित लय विलंबित अर्थात् धीमा,जब गायन वादन आदि कार्य धीमी गति से हो तो उसे विलंबित लय कहते हैं। 2. मध्य लय  संगीत में जब गायन वादन आदि कार्य न तो बहुत अधिक तेज और न ही बहुत अधिक धीमी गति में हो अर्थात मध्य यानि बीच की लय में हो तो उसे मध्य लय कहते हैं। 3. द्रुत लय द्रुत यानि तेज  अर्थात संगीत में जब गायन वादन आदि कार्य तेज में में हो तो उसे द्रुत लय कहते हैं। संगीत में अधिकतर कार्य मध्य लय में ही होता है । विलंबित लय का उदाहरण गायन में बड़ा ख्याल द्रुत लय का उदाहरण सितार का झाला तबला में रेला आदि है।

भारतीय संगीत की परिभाषा

संगीत रत्नाकर के अनुसार,गायन वादन तथा नृत्य के समूह को संगीत कहते है। संगीत का शाब्दिक अर्थ : ‘संगीत’ शब्द संस्कृत के “सम् + गीत” से बना है। ‘सम्’ का अर्थ है – ‘सही ढंग से, सम्यक्’। ‘गीत’ का अर्थ है – ‘गाना’। अर्थात् – जो गाना, बजाना और नृत्य करना सम्यक् रूप से संयोजन में हो, वही संगीत कहलाता है।