प्रमुख तबला वादक पंडित सामता प्रसाद उर्फ गुदई महाराज जीवन परिचय 

पंडित सामता प्रसाद, जिन्हें स्नेहपूर्वक "गुदई महाराज" कहा जाता है, भारतीय शास्त्रीय संगीत के बनारस घराने के एक महान तबला वादक थे।  आपका जन्म 20 जुलाई 1921 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी के कबीर चौरा नामक स्थान पर  हुआ था।  उनका परिवार तबला और पखावज की परंपरा में गहराई से रचा-बसा था।  उनके पिता पंडित हरि सुंदर (बच्चा मिश्रा के नाम से भी प्रसिद्ध), दादा पंडित जगन्नाथ मिश्रा और पूर्वज पंडित प्रताप महाराज (गुदई महाराज) सभी प्रतिष्ठित संगीतज्ञ थे।  


प्रारंभिक जीवन और शिक्षा


सामता प्रसाद ने अपने पिता बच्चा मिश्र जी से तबला वादन की प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की, लेकिन जब वे केवल सात वर्ष के थे, तब उनके पिता का निधन हो गया।  इसके बाद, उन्होंने पंडित बिक्कू महाराज (जो स्वयं पंडित बलदेव सहाय के शिष्य थे) से प्रशिक्षण लिया।  उन्होंने प्रतिदिन लंबे समय तक अभ्यास करके अपनी कला में निपुणता प्राप्त की।  


 उपलब्धियाँ


1942 में इलाहाबाद संगीत सम्मेलन में अपने पहले  के साथ, सामता प्रसाद ने संगीत जगत में अपनी पहचान बनाई।  इसके बाद, उन्होंने कोलकाता, मुंबई, चेन्नई और लखनऊ सहित भारत के विभिन्न शहरों में प्रदर्शन किए और फ्रांस, रूस और एडिनबर्ग जैसे देशों में तबला वाद्य का वादन कर लोगों प्रभावित  किया।  

फिल्मी संगीत में तबला वादन

उन्होंने कई हिंदी फिल्मों में तबला वादन किया, जिनमें "झनक झनक पायल बाजे", "बसंत बहार", "मेरी सूरत तेरी आँखें" और "शोले" शामिल हैं।  कहा जाता है कि संगीत निर्देशक एस.डी. बर्मन ने "मेरी सूरत तेरी आँखें" फिल्म के गीत "नाचे मोरा मनवा मगन" की रिकॉर्डिंग को तब तक स्थगित रखा जब तक सामता प्रसाद बनारस से नहीं पहुंचे।  

सम्मान और पुरस्कार


पंडित सामता प्रसाद को उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया: जिनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है।


पद्म श्री (1972)


संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (1979)


पद्म भूषण (1991)  



शिष्य परंपरा 


उनके प्रमुख शिष्यों में पंडित भोलाप्रसाद सिंह, शशांक शेखर बक्शी, नितिन चटर्जी, नबा कुमार पांडा, गुरमीत सिंह वीरदी, पार्थ सारथी मुखर्जी, सत्यनारायण बशिष्ठ, पंडित चंद्रकांत कामत और उनके पुत्र पंडित कुमार लाल मिश्रा शामिल हैं।  प्रसिद्ध संगीत निर्देशक राहुल देव बर्मन और बप्पी लाहिरी भी उनके शिष्य रहे हैं।  


निधन


अंत में वह अशुभ दिन भी आ गया जब संगीत की दुनिया का सितारा इस दुनिया को अलविदा कह गया।31 मई 1994 को पुणे में एक संगीत कार्यशाला के दौरान पंडित सामता प्रसाद का निधन हो गया।  उनकी यह अंतिम कार्यशाला "नाद रूप" द्वारा आयोजित की गई थी।  पंडित सामता प्रसाद का जीवन और संगीत भारतीय शास्त्रीय संगीत की धरोहर में अमूल्य योगदान है।  उनकी कला और शिक्षाएं आज भी संगीत प्रेमियों और विद्यार्थियों को प्रेरित करती हैं। एक महान तबला वादक के रूप में वे आज भी संगीत प्रेमियों के हृदय में विराजमान है।

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