रुद्र वीणा
भारतीय संगीत में रुद्र वीणा एक प्राचीन वाद्ययंत्र माना जाता है। यह न केवल शास्त्रीय संगीत का एक प्रमुख वाद्य है, बल्कि इसका संबंध आध्यात्मिकता से भी जोड़ा जाता है।
1. प्राचीन ग्रंथों में वीणा का उल्लेख
(क) वेद और पुराणों में
वेदों में ‘वीणा’ शब्द का प्रयोग तो मिलता है, पर वह सामान्य रूप से किसी तंतुवाद्य के लिए किया गया है, न कि रुद्र वीणा के लिए।
शिव पुराण, स्कंद पुराण, और अन्य शैव ग्रंथों में भगवान शिव को ‘वीणाधर’ कहा गया है।
इन ग्रंथों के अनुसार, शिव ने ध्यान और तांडव करते हुए वीणा और डमरू का वादन किया, किंतु वहाँ भी "रुद्र वीणा" शब्द का प्रयोग नहीं हुआ है।
(ख) नाट्यशास्त्र (भरतमुनि)
भरत मुनि द्वारा रचित नाट्यशास्त्र (लगभग दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व) में भी ‘वीणा’ का विस्तृत वर्णन है।
इसमें वीणा की विभिन्न रचनाओं, प्रकारों और उसके प्रयोग की तकनीक पर चर्चा की गई है।
परंतु इस ग्रंथ में भी “रुद्र वीणा” नाम से किसी विशेष वीणा का उल्लेख नहीं मिलता।
2. मध्यकालीन ग्रंथों में रुद्र वीणा का आगमन
(क) संगीत रत्नाकर (शारंगदेव)
13वीं शताब्दी में लिखे गए शारंगदेव के ग्रंथ संगीत रत्नाकर में 'किन्नरी वीणा', 'एकतंत्री वीणा' आदि का वर्णन मिलता है। रुद्र वीणा का प्रथम स्पष्ट उल्लेख: संगीत मकरंद
(क) रचयिता और काल
संगीत मकरंद नामक ग्रंथ के रचयिता नारद मुनि माने जाते हैं, किंतु यह नारद कोई पौराणिक देवर्षि नहीं, बल्कि एक संगीतज्ञ हैं।
यह ग्रंथ लगभग 14वीं से 15वीं शताब्दी के बीच लिखा गया माना जाता है।
(ख) रुद्र वीणा का उल्लेख
संगीत मकरंद में पहली बार ‘रुद्र वीणा’ नामक एक विशिष्ट वीणा का उल्लेख मिलता है।
इसमें रुद्र वीणा की रचना, उसके तारों की संख्या, उसका प्रयोग, और उसकी ध्वनि विशेषताओं पर विस्तार से चर्चा की गई है।
इसे शिव के रूप में रुद्र द्वारा प्रदत्त माना गया है, इसलिए इसका नाम "रुद्र वीणा" रखा गया।
(ग) ग्रंथ की विशेषता
इस ग्रंथ में सात अध्याय हैं—नाद, श्रुति, स्वर, राग, वीणा, ताल, और नृत्य।
‘वीणा’ अध्याय में रुद्र वीणा को एक अत्यंत पवित्र, ध्यानमय और गंभीर स्वरयुक्त वाद्य कहा गया है, जो योग और साधना में सहायक है।
4. बिंदु विवरण
वीणा का सामान्य उल्लेख वेद, पुराण, नाट्यशास्त्र, संगीत रत्नाकर में
रुद्र वीणा का नामोल्लेख सबसे पहले संगीत मकरंद में (14वीं–15वीं सदी)
रचयिता नारद (संगीतज्ञ)
विशेषता रुद्र वीणा को शिव से संबद्ध कर विशिष्ट रूप से प्रस्तुत किया गया
इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि रुद्र वीणा का प्रथम स्पष्ट और नामसहित उल्लेख “संगीत मकरंद” ग्रंथ में मिलता है। इससे पूर्व के ग्रंथों में ‘वीणा’ का वर्णन तो बहुत मिलता है, पर वह नामरूप से ‘रुद्र वीणा’ नहीं होत
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